संक्षिप्त परिचय (Short History)

यह इण्टर कॉलेज चन्दौली जनपद मुख्यालय से लगभग 30 किमी0 दूर चन्दौली-सैदपुर घाट मुख्य मार्ग पर पतित पावनी माँ गंगा के नजदीक मारुफपुर में स्थापित जटाधारी इण्टर कॉलेज की स्थापना स्व० जयप्रकाश सिंह द्वारा की गयी जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा एवं अथक परिश्रम से शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कर गाँव-गिराव के छात्र-छात्राओं के सर्वांगीण विकास के लिए अनुकरणीय प्रयास किया।

स्व० जयप्रकाश सिंह का जन्म 10 जुलाई 1971 को एक छोटे से गाँव मारुफपुर में हुआ। इनके पिता श्री सत्यनारायण प्रसाद श्री खेदनलाल राष्ट्रीय इण्टर कालेज चेतगंज, वाराणसी में प्रवक्ता रहे तथा माता श्रीमती मीना देवी एक कुशल गृहणी रहीं। जयप्रकाश सिंह ने श्री खेदन लाल राष्ट्रीय इण्टर कालेज चेतगंज, वाराणसी से हाईस्कूल, कमलाकर चौबे आदर्श सेवा विद्यालय, वाराणसी से इण्टरमीडिएट श्री गणेश राय स्नातकोत्तर इण्टर कॉलेज, डोभी, जौनपुर से बी० एससी० एवं श्री कमलापति त्रिपाठी स्नातकोत्तर इण्टर कॉलेज, चन्दौली से स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त मारुफपुर, चन्दौली सन् 1996 में जटाधारी प्राथमिक विद्यालय की नींव रखी, तदोपरान्त जूनियर हाईस्कूल, हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट कालेज की स्थापना होने के बाद श्री जयप्रकाश जी को पीलिया जैसी बीमारी ने अपने कब्जे में कर लिया और जीवन के अन्तिम यात्रा तक नहीं छोड़ा प्रकृति प्रदत्त यह प्रकाश 13 सितम्बर 2003 को अन्धकार में विलुप्त हो गया।

विलक्षण प्रतिभा के धनी स्व० जयप्रकाश सिंह द्वारा स्थापित जटाधारी इण्टर कॉलेज का उद्देश्य अध्ययन के साथ-साथ छात्र/छात्रा में उन सभी गुणों को विकसित किया जाना है, जिससे उनके व्यक्तिव का सर्वांगीण विकास हो सके तथा छात्र-छात्रा इतने प्रतिभा सम्पन्न हों कि वे आकाश में चमकने वाले प्रकाश पुंज की तरह अपनी प्रतिभा, योग्यता, व्यक्तित्व की चमक दुनिया में बिखेर सके साथ ही साथ एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना अपूर्व योगदान देते हुए जयप्रकाश के प्रकाश ज्योति को रोशन करें और पूरे दुनिया में अपनी पहचान स्थापित करते हुए माता-पिता व इण्टर कॉलेज की अपेक्षाओं को पूरा करे ।

इण्टर कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना के द्वारा छात्र/छात्रा में देश प्रेम कर्तव्य निष्ठा, त्याग, संयम, सहनशीलता, धर्मनिरपेक्षता एवं भाईचारे की भावना व अनुशासन द्वारा शिष्टाचार की भावना तथा गणवेश (ड्रेस) द्वारा समानता की भावना जागृत करना है।